श्रीमति एक ३० साल की कुंवारी महिला है, जिसके पास नौकरी नहीं, परिवार में कोई कमाई नहीं और उसे अपना पैत्रिक घर भी वापिस लेना है। इस काम के लिए उसे बहुत पैसा चाहिए भी बहुत ही कम समय में। जब उसे मौका मिलता है तो वो अपने गाँव में एक बार खोल लेती है। ये कहानी है श्रीमती के सफ़र की जिसके रास्ते में कई सामाजिक और नैतिक अडचनें आती है, और सबसे बड़ी अड़चन है उसका अपना नाम।